‘आनंदी’ उपन्यास का नाट्य रूपांतरण
मानवीय संवेदना का प्रतीक ग्रामीण परिवेश जहां भारतवर्ष बसता है, समाज के उस आधार स्तंभ के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी आनंदी ने कम उम्र से ही अपनी विलक्षण बुद्धि, समाज की कुरीतियों से लड़ने की अपार शक्ति, एवं निर्भीकता का प्रतीक होने की अपनी योग्यता प्रदर्शित कर दी थी। अपनी चतुराई, स्वाभिमान, और दृढ़-निश्चय से हर कठिनाई पर विजय पाती एवं अनगिनत ज़िम्मेदारियों से परिपूर्ण अपने जीवन-संग्राम का निर्वाह करती गई। वह लड़की, जो एक बेटी बनी, बहन बनी, पत्नी बनी, बहू बनी, माँ बनी, परंतु एक औरत होना वह कभी नहीं भूली। गाँव में ग़रीबी से लड़ती आनंदी का बचपन और फिर शहर में शिक्षा प्राप्त करने की उसकी दृढ़-शक्ति, ससुराल में पुनः ग़रीबी से सामना, और तत्पश्चात् अपने विवाहित जीवन में उपस्थित अपने परिवार, समाज और विषम परिस्थितियों के बीच जूझते उसके सबल व्यक्तित्व को दर्शाती, आनंदी ने न केवल स्वयं को, अपितु अपने परिवार को भी अपने साथ संपन्नता की ओर अग्रसर किया। इस दौरान उसकी ज़िम्मेदारियों की सूची लंबी होती गई, परंतु उसने कभी हिम्मत नहीं हारी। दशकों पहले समय से आगे सोचने के अपने दृष्टिकोण एवं शिक्षा और आत्मनिर्भरता को अपनी हिम्मत की ढाल बना आनंदी ने स्त्री होने के अपने हर कर्तव्य को पूरा किया, और वही ऊर्जा और संस्कार अपने बच्चों में संचारित किया। आनंदी की कहानी समाज के किसी भी वर्ग की महिला के लिए प्रेरणादायी है और महिला सशक्तिकरण का उल्लेखनीय उदाहरण है जो हमारे देश में स्त्री शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के पहलुओं को शिखर तक दर्शाने में सफलता की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित होगा।
उपन्यास – आनंदी
उपन्यास लेखन – ज्योति झा
मुख्य कलाकार : सुश्री मोना मोहन झा